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Tuesday, 26 December 2017

kangra fort


कांगड़ा किले को नगर कोट के नाम से भी जाना जाता है। जिसका निर्माण काँगड़ा के मुख्य साही परिवार ने कराया था। समुद्र स्तर से 350 फुट की ऊंचाई पर स्थित ये किला 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। ये किला आज जहाँ स्थित है उसे पुराना काँगड़ा भी कहा जाता है। ये काँगड़ा शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है , ये किला जितना सुन्दर है उनता ही इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। इस किले का वर्णन महाभारत में भी है साथ ही ये भी कहा गया है की जब महान यूनानी शासक अलेक्जेंडर ने यहाँ आक्रमण किया तब भी ये किला यहाँ मौजूद था। ये किला दो प्रमुख नदियों बानगंगा और मांझी नदी के पास बना हुआ है। ये किला दो विशाल और मोटी दीवारों से घिरा है। इस किले में जाने के लिए पहले आगंतुक को एक छोटे से बरामदे में से होकर गुजरना होगा जहाँ किले के दो प्रमुख द्वारा उसके मार्ग में पड़ेंगे। बताया जाता है की ये किला सिख अवधि का है और इसे पटक या रंजीत सिंह द्वार के भी नाम से जाना जाता है। इस किले के शीर्ष पर व्यक्ति अहनी और अमीरी अहनी के माध्यम से जा सकता है। काँगड़ा के पहले गवर्नर नवाब अलिफ़ खान ने इस किले के द्वारों का निर्माण कराया था। यहाँ आने वाले पर्यटक इस किले में वॉच टावर , लक्ष्मी नारायण मंदिर और आदिनाथ मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं


कांगड़ा किला भारत के कांगड़ा शहर के बाहरी इलाके के धर्मशाला शहर से 20 kilometer की दुरी पर स्थित है।

काँगड़ा किले का इतिहास :

कांगड़ा किले का निर्माण कांगड़ा राज्य (कटोच वंश) के राजपूत परिवार ने करवाया था, जिन्होंने खुद को प्राचीन त्रिगार्ता साम्राज्य, जिसका उल्लेख महाभारत पुराण में किया गया है के वंशज होने का प्रमाण दिया था । ये हिमालय में मौजूद किलो में सबसे विशाल और भारत में पाये जाने किलो में सबसे पुराना किला है। सं 1615 में, मुग़ल सम्राट अकबर ने इस किले पर घेराबंदी की थी परन्तु वो इसमें असफल रहा। इसके पश्चात सं 1620 में, अकबर के पुत्र जहांगीर ने चंबा के राजा (जो इस क्षेत्र के सभी राजाओ में सबसे बड़े थे) को मजबूर करके इस किले पर कब्ज़ा कर लिया। मुग़ल सम्राट जहांगीर ने सूरज मल की सहायता से अपने सैनिकों को इस किले प्रवेश करवाया था। कटोच के राजाओ ने मुग़ल शासन के कमजोर नियंत्रण और मुग़ल शक्ति की गिरावट के कारण लगातार मुग़ल नियंत्रित क्षेत्रों को लुटा। सं 1789 में राजा संसार चंद II ने अपने पूर्वाजो के प्राचीन किले को बचा लिया। महाराजा संसार चंद ने गोरखाओं के साथ कई युद्ध किये थे जिनमे एक ओर गोरखा और दूसरी ओर सिख राजा महाराजा रंजीत सिंह होते थे। संसार चंद इस किले का प्रयोग अपने पडोसी राज्य के राजाओ को कैद करने के लिए किया था जो उनके खिलाफ हुए षड्यंत्र का कारण बन गया। सिखों और कटोचो के बीच हुए एक युद्ध के दौरान, किले के द्वार को आपूर्ति के लिए खुल रखा गया था। सं 1806 में गोरखा सेना ने इस खुले द्वार से किले में प्रवेश कर लिया। ये सेना महाराजा संसार चंद और महाराजा रंजीत सिंह के बीच एक गठबंधन का कारण बनी। इसके बाद सं 1809 में गोरखा सेना पराजित हो गयी और अपनी रक्षा करने के लिए युद्ध से पीछे हट गयी और सतलुज नदी के पार चली गयी। इसके पश्चात सं 1828 तक ये किला कटोचो के अधीन ही रहा क्योकि संसार चंद की मृत्यु के पश्चात रंजीत सिंह ने इस किले पर कब्ज़ा कर लिया था। अंत में सं 1846 में सिखों के साथ हुए युद्ध में इस किले पर ब्रिटिशो ने अपना शासन जमा लिया।

ब्रिटिश की चौकी ने इस किले पर कब्ज़ा कर लिया परन्तु 4 अप्रैल 1905 में आये एक भीषण भूकम्प आया जिसमे उन्होंने इस किले को छोड़ दिया।



किले की संरचना :


इस किले में प्रवेश करने के लिए एक छोटा सा आँगन है जो दो द्वारों के बीच में है। किले के प्रवेश पर की गयी शिलालेख के मुताबिक इन दो द्वारों का निर्माण सिख शासनकाल के दौरान करवाया गया था। किले के शिखर तक पहुंचने के लिए एक बहुत लम्बा और संकीर्ण मार्ग है, जो अहानि और अमीरी दरवाज़े से होकर गुजरते है। इन दोनों ही द्वारों का निर्माण कांगड़ा के पहले मुग़ल गवर्नर, नवाब सैफ अली खान ने करवाया था। बाहरी द्वार से 500 feet की दुरी पर जहांगीरी दरवाज़ा है। वर्तमान में दर्शनी दरवाज़े के आस पास देवी गंगा और देवी यमुना की मुर्तिया है। इस द्वार के द्वारा आँगन में पंहुचा जाता है जिसके दक्षिणी ओर लक्ष्मी नारायण सिताला और अम्बिका देवी के मंदिर है। इन दोनों मंदिरों के मध्य एक छोटा से मार्ग है जो महल की ओर जाता है। ये किला भारत के सबसे खूबसूरत किलो में से एक है।


स्थान :

ये किला कांगड़ा शहर के ठीक दाई ओर स्थित है। कहा जाता है कांगड़ा उनमे से एक है जिन्होंने इस किले पर शासन किया था। पुराने कांगड़ा के निकट पहाड़ी के शिखर पर जयंती माँ का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण गोरखा सेना के सेनपाति, बड़ा काजी अमर सिंग थापा ने करवाया था। इसके निकट ही एक छोटा से संग्रहालय है जो कांगड़ा किले के इतिहास को बयान करता है। किले के पास महाराजा संसार चंद कटोच संग्रहालय है जिसका प्रबंधन कांगड़ा का शाही परिवार करता है। इस संग्रहालय में किले और संग्रहालय के लिए कई गाइड है और साथ ही एक कैफेटेरिया भी है।


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